**तड़प श्याम की**
जब दूर था तो पास आने की ख्वाहिस थी
अब जब पास हूं तो बहूत दूर जाना चाहता हूं
डर लगता है दूर होने से
क्या पता लौट के आउं ना आउं
डरता हूं पास रहने से
कहीं इसी तड़प के साथ बर्बाद होके खत्म ना हो जाउं
एक घूटन जो हर पल मेरे साथ है
आजकल यह शायद उसी बर्बादी की शुरुआत है
मेरा सबके साथ रहना खुशकिस्मती है
लेकिन दूर जाना तो मेरी किस्मत है
मैं बदल तो नहीं सकता इसे यही मेरी तकदीर है
शायद कुछ वक्त दूर रहकर खुद को बदल लूं
अगर मिला मौका तो फिर मिलेंगे
नहीं मिला तो समझ लेना जिंदगी ने अपनी उधार सांसे वापस मांग ली
तुम्हारे ईश्क का कर्ज मैं चूका ना पाउं
तो गरीब था समझकर माफ कर देना।।
― श्याम
No comments:
Post a Comment